मैं वृक्ष हूँ, हरियाली हूँ मैं
सम्पदा अनमोल हूँ
धरती पर खुशहाली हूँ मैं
मैंने देखे हैं कई पल,
साल, युग और सदियां
जन्म लेती, विलुप्त होती
कई प्रजाति और शक्तियां
तुम धर्म जाती में बंधे मानव
अपनी सभ्यता पर इतराते हो
ईश्वर का अस्तित्व बचने में
अपने शीश भी कटाते हो
मैं तुम्हे जीवन देता
वक्त पर भोजन देता
सूर्य से छाया और
प्यास में पानी देता
तुम्हारे ईश्वर की तरह
बदले तुमसे मैं क्या लेता
मेरे लिए तुम्हारे मन में
क्यों नहीं ईश्वर सा विचार
क्यों मेरी जड़ों पर करते प्रहार
सभ्यताएं हैं हजारो वर्ष से आसीन
धरती पर अस्तित्व मेरा किन्तु है बहुत प्राचीन
इस प्राचीनता को खत्म मत करो
मेरा अस्तित्व नष्ट मत करो
तुम जी नहीं पाओगे
धन तो कमा लोगे किन्तु
सांसे न कमा पाओगे।
लेखक - पुनीत शर्मा।
सम्पदा अनमोल हूँ
धरती पर खुशहाली हूँ मैं
मैंने देखे हैं कई पल,
साल, युग और सदियां
जन्म लेती, विलुप्त होती
कई प्रजाति और शक्तियां
तुम धर्म जाती में बंधे मानव
अपनी सभ्यता पर इतराते हो
ईश्वर का अस्तित्व बचने में
अपने शीश भी कटाते हो
मैं तुम्हे जीवन देता
वक्त पर भोजन देता
सूर्य से छाया और
प्यास में पानी देता
तुम्हारे ईश्वर की तरह
बदले तुमसे मैं क्या लेता
मेरे लिए तुम्हारे मन में
क्यों नहीं ईश्वर सा विचार
क्यों मेरी जड़ों पर करते प्रहार
सभ्यताएं हैं हजारो वर्ष से आसीन
धरती पर अस्तित्व मेरा किन्तु है बहुत प्राचीन
इस प्राचीनता को खत्म मत करो
मेरा अस्तित्व नष्ट मत करो
तुम जी नहीं पाओगे
धन तो कमा लोगे किन्तु
सांसे न कमा पाओगे।
लेखक - पुनीत शर्मा।
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