Saturday, April 18, 2020

Ek Sawaal एक सवाल


पूछ रही है आज फकीरी
एक सवाल अपने रब से,
पड़ा हुआ है अकाल घरमें
किस्मत का जाने कब से
सूरत, बांद्रा, दिल्ली में थे
रुके हम भूखे जाने कब से
कोटा के होनहार थे सारे
हमारे थे खोटा सिक्का
सिक्कों की खनक के आगे
मजदूरों की किस्मत न जागे
कहीं कुछ होनहार फंसे है
भूख की दलदल में धंसे हैं
शासन देखो भाग रहा है
ये पता चला है जब से।
पूछ रही है आज फकीरी
एक सवाल अपने रब से।।
........... पुनीत शर्मा,

Sahishnuta-सहिष्णुता -Intolerance


सहिष्णुता हो जाये खत्म
यदि न्याय बाँटना हो जाये धर्म
कुरुक्षेत्र में मात्र छल का वध हो
और इस बार अपराजित रहे कर्ण
दुर्योधनों को न मिले राधेय कोई
यदि नफरत मनुष्यों में हो जाये खत्म

हैं रंग समान, हैं रक्त समान
है क्रोध समान, है प्रेम समान
जननी के सारे बालक भगवान
फिर कैसा हिन्दू, कैसा मुसलमान।

                   
लेखक - पुनीत शर्मा 



आज़ादी पर गर्व हमें भी
पर ये कैसी आजादी है 
जे एन यू  में भारत माँ के 
विरूद्ध नारे लगवाती है। 

भारत-प्रगति क्यों बाधित है 
इस पर शोध नहीं होता 
क्या विद्यालयों में राष्ट्र-भक्ति 
का कोई बोध नहीं होता। 

भारत माँ का झंडा जब 
पैरों के नीचे आता है 
और जहाँ अफजालों पर 
मार्च निकला जाता है। 

कई रातों तक दरिद्र कोई 
जहाँ पत्ते चाट कर सोता है 
भूख की खातिर कोई यहाँ 
जब बच्चे बेच कर रोटा है। 

जब नेता गरीबी के बदले
गरीब हटाने लग जाते हैं 
बी पी एल से सामान्य के                 
कार्ड बनाने लग जातें हैं। 

पकवानों के चक्कर में 
रोटी महंगी हो जाती है 
मृगतृष्णा बढ़ती हैं जब 
दया महंगी हो जाती है। 

सड़कों पर लुटती अस्मत
पर कोई शोर नहीं होता 
किसानो की आत्महत्या पर 
जब कोई रोष नहीं होता। 

जहाँ नेताओ को जन पीड़ा 
सुनने का शौक नहीं होता 
ऐसी आजादी पर हरषाने का 
मुझे कोई लोभ नहीं होता।

    ............ लेखक-पुनीत शर्मा।

Sahishnuta-सहिष्णुता -Intolerance


सहिष्णुता हो जाये खत्म
यदि न्याय बाँटना हो जाये धर्म
कुरुक्षेत्र में मात्र छल का वध हो
और इस बार अपराजित रहे कर्ण
दुर्योधनों को न मिले राधेय कोई
यदि नफरत मनुष्यों में हो जाये खत्म

हैं रंग समान, हैं रक्त समान
है क्रोध समान, है प्रेम समान
जननी के सारे बालक भगवान
फिर कैसा हिन्दू, कैसा मुसलमान।

                   
लेखक - पुनीत शर्मा 

Koshish-कोशिश-Effort

कोशिश कोई भी अंतिम नहीं होती
बस दोहराने की हिम्मत नहीं होती
ये तो कमजोरियां हैं इंसानों की
जो डरा देते हैं हमे अँधेरे भी
आसमानो में उड़ते हुए परिंदों की
धड़कन कभी बंद नहीं होती.

                       
लेखक - पुनीत शर्मा। 

Main Vraksh hoon-मैं वृक्ष हूँ-I am Tree.

मैं वृक्ष हूँ, हरियाली हूँ मैं
सम्पदा अनमोल हूँ
धरती पर खुशहाली हूँ मैं
मैंने देखे हैं कई पल,
साल, युग और सदियां
जन्म लेती, विलुप्त होती
कई प्रजाति और शक्तियां
तुम धर्म जाती में बंधे मानव
अपनी सभ्यता पर इतराते हो
ईश्वर का अस्तित्व बचने में
अपने शीश भी कटाते हो
मैं तुम्हे जीवन देता
वक्त पर भोजन देता
सूर्य से छाया और
प्यास में पानी देता
तुम्हारे ईश्वर की तरह
बदले तुमसे मैं क्या लेता
मेरे लिए तुम्हारे मन में
क्यों नहीं ईश्वर सा विचार
क्यों मेरी जड़ों पर करते प्रहार
सभ्यताएं हैं हजारो वर्ष से आसीन
धरती पर अस्तित्व मेरा किन्तु है बहुत प्राचीन
इस प्राचीनता को खत्म मत करो
मेरा अस्तित्व नष्ट मत करो
तुम जी नहीं पाओगे
धन तो कमा लोगे किन्तु
सांसे न कमा पाओगे।
           
लेखक - पुनीत शर्मा। 

JHOOTHI SHAAN SE BACH JAATI - झूठी शान से बच जाती